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देस मेरा / अनातोली परपरा

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कवि व्लादीमिर सकालोफ़ के लिए


छोटी-सी वह नदिया और नन्ही-सी पहाड़ी

वनाच्छादित भूमि वह कुछ तिरछी-सी, कुछ आड़ी

बसी है मेरे मन में यों, छिपा मैं माँ के तन में ज्यों


नज़र जहाँ तक जाती, बस अपनापन ही पाती

ऊदे रंग की यह धरती मन को है भरमाती

चाहे मौसम पतझड़ का हो या जाड़ों के पहने कपड़े

मुझे लगे वह परियों जैसी, मन को मेरे जकड़े


कभी लगे कविता जैसी तो कभी लगे कहानी

बस, लाड़ करे धरती माँ मुझ से, भूल मेरी शैतानी

अब मेरे बच्चे भी ये जाने हैं, उनका उदगम कहाँ

जहाँ बहे छोटी-सी नदिया, है नन्ही पहाड़ी जहाँ