भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उणनब्बै / प्रमोद कुमार शर्मा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:10, 4 जुलाई 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इयां ना सोचियो
-सबद कोनी
म्हारी अनुभूति नैं जकी होÓर पांगळी
ऊभी है बजारां री सींवां मांय

म्हैं तो फगत जोवूं उण टैम नैं
जद कीं चेतो आवसी जीवां मांय

अजै तो बै बेहोस है
पण हरेक जीव रै भीतर अेक सबदकोस है

म्हांनै बठै तांई पूगणो है
छेवट तो मायड़ भाखा रो सूरज
-ऊगणो है।