भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गीत गुणनफल के / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:05, 11 अगस्त 2014 का अवतरण
गीत गुणनफल के
सम्बोधन कल के
डूब गए धार में फिसल के
मछली थी बाँह की प्रिया
क्यों मन को तामसी किया
सपनों के पंख सीपिया
रह गए कगार पर मचल के
नीर में छपाक-सी हुई
पीर खुल गई कसी हुई
ज़िन्दगी मज़ाक-सी हुई
रंग उड़े काग़ज़ी कमल के
खेल कर क्षणिक पराग से
उम्र भर जले चिराग-से
भीतरी अदृश्य आग के
और घने हो गए धुँधलके