भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सावन का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 18 अगस्त 2014 का अवतरण
बना आम की गुठली का बाजा
खोल दिया मौसम का दरवाज़ा
अब गली नदी बनेगी ।
हमारी नाव चलेगी ।।
धरती पर लहराएगा पानी
हवा करेगी अपनी मनमानी
कहीं बिजली चमकेगी ।
हमारी नाव चलेगी ।।
गीत उठेंगे अँगड़ाई लेकर
पतनाले बोलेंगे छरर-छरर
धरा की प्यास बुझेगी ।
हमारी नाव चलेगी ।।