भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अमावस का गीत / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:03, 19 अगस्त 2014 का अवतरण
शैतानी कर रहे सितारे
चाँद आज छुट्टी पर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।
भेज दिए अर्दली धुँधलके
तम ने दसों दिशाओं को
चलते-चलते ठहर गई हैं
क्या हो गया हवाओं को ।
सड़कें ऐसे चुप हैं जैसे
शहर नहीं ये बंजर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।
चली गई लानों की बातें
जाने किन तहखानों में
ऐसी ख़ामोशी है जैसी
होती है शमशानों में
आँगन से बाहर तक डर का
फैला हुआ समन्दर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।