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नाव बांध कर / केदारनाथ अग्रवाल
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नाव बांध कर
चला गया है जीवन का मल्लाह;
चढ़ी नदी से
उमड़ रही है बंधी नाव की आह !
भूमि छोड़ कर
चला गया है सूरज का आलोक;
अन्धकार से उमड़ रहा है
- खिन्न भूमि का शोक !