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जथारथ / राजू सारसर ‘राज’
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कूड़ है
सफा कूड़।
दिवलै री लो माथै
फिडकलै रो बळणौ।
आतमा री
डूंगी प्रीत माथै
निछारावळ होवणौ।
लोग मानै
बे ई मिनखां मान ई
करै, पण बीजां रै
रातां सुखां सूं ईसकौ,
होम देवै आपरी जूण
बीं री हस्ती मिटावण सारू
कै, बै है चोरमनां
बांनैं नीं सुहावै चानणौं
बै बळ मरै
आ सौच ’र
घर तो घोसियां रो ई बळै
सुख पण उंदरा ई पाल्यै
आ बात, पण
लोगां रैं जचै कोनीं
ओ जथारथ सौरे सांस पचै नीं।