Last modified on 17 मार्च 2008, at 09:43

ओ एक ही कली की / अज्ञेय

Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 09:43, 17 मार्च 2008 का अवतरण

ओ एक ही कली की

मेरे साथ प्रारब्ध-सी लिपटी हुई

दूसरी, चम्पई पंखुड़ी!

हमारे खिलते-न-खिलते सुगन्ध तो

हमारे बीच में से होती

उड़ जायेगी!