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प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !
सूर्य भीषण हो गया अब,चन्द्रमा स्पृहणीय सुन्दर
कर दिये हैं रिक्त सारे वारिसंचय स्नान कर-कर
रम्य सुखकर सांध्यवेला शांति देती मनोहर ।
शान्त मन्मथ का हुआ वेग अपने आप बुझकर
दीर्घ तप्त निदाघ देखो, छा गया कैसा अवनि पर
प्रिये ! आया ग्रीष्म खरतर !