भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पान माई / भारत यायावर

Kavita Kosh से
Linaniaj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:39, 28 जनवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आठ-दस केले

आठ-दस अमरूद

और गुड़ के गट्ठर


प्राथमिक पाठशाला के ऎन दरवाज़े पर

सजती है यह दुकान

एक छॊटे से बोरे पर

और धूप में

चमकती रहती है


इस दुकान के तीन सामान

तीन कोनों में रहकर

भारत के नक्शे का बोध देते हैं


पान माई इस नक्शे पर झुकी रहती है

सुबह से शाम तक


सुबह से शाम तक

बच्चों के नन्हे पैर

रुकते हैं

दुकान के सामने

करते हैं बोरे के

बोझ को कम


पानमाई की यह दुकान

अंधेरे से चिढ़ती है

वह नहीं होना चाहती

अंधेरे के क्रिया-कलाप में शरीक


अपनी दिन भर की कमाई

शाम होते ही

पानमाई को सौंपकर

उसके कंधे पर हो जाती है सवार

और पहुँच जाती है

लाला लखन लाल की दुकान


लखन लाल की दुकान की

भव्यता को देखकर

कितना दुखी हो जाती है

पानमाई की दुकान ?

अपनी दिन भर की कमाई

सौंप देती है पानमाई

लाला लखन लाल की दुकान को

थोड़े सत्तू और नमक के लिए


पानमाई !

पैंतीस में हो गई बुढ़िया

पानमाई !

तुम्हें छोड़कर

कहाँ चली गई

तुम्हारी पान बिटिया ?

किस दिशा में

खो गया तुम्हारा पति ?