भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्लांत तन-मन रे कलापी... / कालिदास
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:05, 29 जनवरी 2008 का अवतरण
|
क्लांत तन-मन रे कलापी तीक्ष्ण ज्वाला मे झुलसता
बर्ह में धर शीश बैठे सर्प से कुछ न कहता,
भद्रमोथा सहित कर्म शुष्क-सर को दीर्घ अपने
पोतृमण्डल से खनन कर भूमि के भीतर दुबकने
वराहों के यूथ रत हैं, सूर्य्य-ज्वाला में सुलग कर
प्रिये आया ग्रीष्म खरतर!