भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम बच्चे हैं / चिरंजीत

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:43, 3 अक्टूबर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम बच्चे हैं छोटे-छोटे, काम हमारे बड़े-बड़े!
आसमान का चाँद हमीं ने-
थाली बीच उताराहै,
आसमान का सतरंगा-
वह बाँका धनुष हमारा है।
आसमान के तारों में वे तीर हमारे गड़े गड़े!
भरत रूप में हमने ही-
तो दाँत गिने थे शेरों के,
और राम बन दाँत किए थे-
खट्टे असुर लुटेरों के।
कृष्ण कन्हैया बनकर हमने नाग नथा था खड़े-खड़े!
बापू ने जब बिगुल बजाया
देश जगा हम भी जागे,
आज़ादी के महासमर में
हम सब थे आगे-आगे।
इस झंडे की खातिर हमने कष्ट सहे थे बड़े-बड़े!