भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पप्पी करे शिकायत / जहीर कुरैशी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 20 अप्रैल 2021 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पापा के घर में घुसते ही बोल उठी पप्पी-
पापा-पापा, आज हमें मम्मी ने मारा था।
हम तो खेल रहे थे अपनी शीलू गुड़िया से
शीलू गुड़िया से यानी आफत की पुड़िया से।
तभी आ गई थी रीता की नानी अपने घर,
मम्मी इकदम उलझ पड़ी थी नानी बुढ़िया से।
‘अबरीना के घर जाएगी तो तोडूँगी टाँग’,
हाँ पापा यह कहकर मम्मी ने दुतकारा था।
पापा जब अपनी मम्मी गुस्सा होा जाती हैं
उनका चेहरा लाल तवे जैसा हो जाता है।
तब अकसर मम्मी जी मुँह ढककर सो जाती हैं,
फिर मुझको क्या करना, मुझको समझ न आता है।
आज भी मम्मी गुस्सा करके लेटी थी पापा-
मैंने उन्हें छुआ तो चाँटा पड़ा करारा था।
वैसे पापा, अपनी मम्मी अच्छी मम्मी हैं,
मुझे प्यार करती हैं, मेरी पप्पी लेती हैं!
मुझे रात में परियों वाली कथा सुनाती हैं,
शाला जाते समय मुझे टॉफी भी देती हैं।
लेकिन जब भी मम्मी जी को गुस्सा आता है-
मुझको लगता है-मुझ पर ही गुस्सा सारा था।