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हवा आओगी / रामनरेश पाठक
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हवा आओगी
बाहों में ?
अव सिमटोगी
प्राणों में ?
गीत स्वर में
सध जाओगे ?
मीत मरू से
लग पाओगे ?
छाँव सूरज को
चूमेगी ?
नाव झंझा से
खेलोगी ?
धरती नभ को भी छू लोगी, जकड़ोगी ?
परती श्रम को भी सोखोगी ?
नहीं, !
नहीं. !!
नहीं. !!!