भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कमाल की औरतें ३९ / शैलजा पाठक

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 21 दिसम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़कियां पक के तैयार हैं अब काट दो
लड़कियां अकेली मिलें तो बांट लो

अबकी बो लो लड़कियों के बीज
धरती-धरती को लेकर सो जायेगी
जमीं बंजर हो जायेगी

छोटी सी पायल में खनकेगा ƒघर का आंगन
शीशे में चिपकी बिंदी आग सी दहकेगी

तुम हाथ सेंकना।