भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किताब / गायत्रीबाला पंडा / शंकरलाल पुरोहित
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:04, 19 फ़रवरी 2025 का अवतरण
एक किताब की तरह
स्वयं को खोले और बन्द करे
पुरुष की मरज़ी पर ।
एक किताब की तरह
उसके हर पन्ने पर
आँखें तैराता पुरुष
जहाँ मन वहाँ रुकता
तन्न तन्न कर पढ़ता ।
विभोर और क्लान्त हो, तो हटा देता
एक कोने में । खर्राटे भरता
तृप्ति में ।
मूल ओड़िया भाषा से अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित