भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटी हिम की टेक / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:02, 29 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टूटी हिम की टेक

हिंडोले वन के डोले,

जागे जोगी शैल

मनोभव लोचन खोले ।

लोल हुई कल्लोल कामिनी कूल सुहाए

गूँजे छवि के छंद क्षमा के ऋतुपति आए ।