भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आशा का दीपक / रामधारी सिंह "दिनकर"

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:25, 8 अप्रैल 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नही है
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है
चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से
चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नही है
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है