भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

माँ / दिविक रमेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे

दूध बिलौने से पहले

माँ

चक्की पीसती,

और मैं

घूमेड़े में

आराम से

सोता


तारीफ़ों में बँधीं

माँ

जिसे मैंने कभी

सोते

नहीं देखा


आज

जवान होने पर

एक प्रश्न घुमड़ आया है -


पिसती

चक्की थी

या

माँ


माँ