Last modified on 1 जनवरी 2017, at 23:13

सपना ना टूटे / डी. एम. मिश्र

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोई सपना ना टूटे
कोई साथी ना छूटे
मेरे गीतों की साध
मेरी साँसो की आस
होगी पूरी कभी

चाहे दर्पण हो मैला, चाहे सागर हो गँदला
धुँधली क्यों हों तस्वीरें तेरी आँखें जो निर्मल
चाहे साहिल तरसाये, चाहे मंजिल भरमाये
पर, न ठहरेंगे धारे तेरा सम्बल जो पल-पल

सूखे रेतों की दुनिया
बादल बरसे न छलिया
फिर भी है ये विश्वास
मेरे जीवन की प्यास
होगी पूरी कभी

तारे कितने हों ऊँचे, मोती कितने हों गहरे
फिर भी बाँधे है रहता सब को धरती का रिश्ता
बन्धन कर्मों का हो या दर्शन धर्मों का हो, पर
सोने-चाँदी का सिक्का आगे-पीछे है चलता

अमरित मरने से पहले
चाहे थेाड़ा ही चख ले
जिसका रग-रग में वास
चाहत ऐसी वो खास
होगी पूरी कभी