भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गळगचिया (24) / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आशीष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:38, 17 मार्च 2017 का अवतरण
पंखेरू कयो-रूँखड़ा थारै पराँ तो अणगिणत पंखेरू आवै र चल्या जावै, तूं सगळां री याद किंया राखै है ?
रूँख बोल्यो- म्हारो एक एक पानड़ो एक एक आयै र गयै री याद है।