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वक़्त / अरुण कमल
Kavita Kosh से
ऎसा ही वक़्त आ गया है
जब माँ को बच्चे को दूध भी पिलाना
गुनाह है
वे हाथ में जाब लिए घूम रहे हैं चारों ओर
जहाँ कोई गाय रम्भाई
जहाँ किसी बछड़े ने दूब पर मुँह दिया
कि दौड़े हुए आए और धर लिया
बोलना गुनाह
खाँसना गुनाह
आंगन में औरतों का हँसना गुनाह
छुरा भाँजते गुंडे छुट्टा घूम रहे हैं
और अपने ही घर की चौखट पर
बैठा आदमी
मारा जा रहा है
सड़क पार करते
अचानक किसी बात पर हँसते
कहीं कभी कोई भी कत्ल हो जा सकता है
ऎसा ही वक़्त आ गया है
ऎसा ही वक़्त आ गया है
जब गुंडे बेला के फूलों की माला पहन
जै-जैकार करा रहे हैं
जब ज़हर-माहुर फल-फूल रहे हैं
और फूलों की क्यारियों में जल नहीं...