भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुर्दिनों में कविता-1 / उदय प्रकाश

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:21, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तिनके की उम्मीद में आप करते हैं टेलिफ़ोन

तो सब बाथरूम में होते हैं


आप जेब में सिक्के टटोलते हैं

राज्य परिवहन की बस से बहुत दूर

दोपहर में जाते हैं उनसे मिलने

वे सो रहे होते हैं


बीस साल पुराना बचपन का दोस्त नौकरी से बरख़ास्त होकर

अपने पिता का इलाज कराने आपके घर आ जाता है


कविताएँ जीवन स्तर की तरह ही

निकृष्ट हो जाती हैं

(उदाहरणार्थ यही कविता)


दुर्दिनों में कहीं नहीं मिलता उधार

फिर भी हम खोजते-फिरते हैं प्यार