भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमी की बिसात / तारादत्त निर्विरोध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सच सभी का कहा नहीं होता,
हादसा हर दफा नहीं होता ।

जख्मेदिल फिर हरा नहीं होता,
आजकल वो खफा नहीं होता ।

साँस लेने का मोल लेते हो,
इससे कोई नफा नहीं होता ।

जंदगी से कट के रह जाए,
वो कोई फलसफा नहीं होता ।

दर्द की बात फेर ही कीजे,
दर्द दिल से जुदा नहीं होता ।

आदमी की बिसात क्या होगी,
आदमी तो खुदा नहीं होता ।

उम्र भर "निर्विरोध" रह के जिये,
वरना दुनिया में क्या नहीं होता ?