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ग़द्दार / अनवर ईरज

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तुमने बावन साल

ग़द्दार, ग़द्दार

का एक ही नारा बुलंद किया

कि एक झूठ

सच बन जाए

लेकिन

शायद तुम भूल गए

मेरी

ज़र्रे-ज़र्रे से वफ़ादारी

जो तुम्हें, बावन साल

दुनिया के सामने

झुठलाती रही

और तुम इस सदी के

सब से बड़े काज़िब

साबित हुए

निस्फ़ सदी की

ये तेरी कोशिश

झूठ, सच का

लबादा बदल तो सकती थी

लेकिन

तुम्हें कौन समझाए

कि आफ़ाक़ी सच

अपना लबादा

नहीं बदलता