भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पानी का बुलबुला / उज्जवला ज्योति तिग्गा
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:18, 15 अगस्त 2017 का अवतरण
मेरे आँसू हैं महज
पानी का बुलबुला
और मेरा दर्द
सिर्फ़ मेरा दिमागी फ़ितूर
उनके तमाम कोशिशों के बावजूद
मेरे बचे रहने की ज़िद्द के सामने
धराशायी हो जाते हैं
उनके तमाम नुस्खे और मंसूबे
अपने उन्हीं हत्यारों की ख़ुशी के लिए
रोज़ हँसती हूँ गाती हूँ मैं
जिन्हें सख़्त ऐतराज है
मेरे वजूद तक से
उन्हीं की सलामती की दुआ
रोज़ माँगती हूं मैं
अजनबी होते देश में
रहने की क़ीमत
रोज़ अपना सिर कटा कर
चुकाती हूँ मैं।