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नयकी केॅ संदेश / मनीष कुमार गुंज

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कत्तोॅ लोर चुआबोॅ, साथें जाबे पड़थाैंन
हिन्नें के ममता हुन्नें फरियाबे पड़थाैंन।

हम्में अठमां पास मुरूख नै समझोॅ हमरा
चापानल, सौचालय, अैंगना, पक्की कमरा
माय-बाप कमियां छै हमरोॅ खूब कमाबै
देह से निकलै नोन, रौद में खूब घमाबै
समय समय पर माय के गोड़ दबाबे पड़थौंन
कत्तोॅ लोर चुआबोॅ, साथें ....................।

सब सुख से भरलोॅ छै हमरोॅ रैन बसेरा
चार बजे अैंगना में उतरै रोज सबेरा
गैया-लुरूआ के देना छै सानी पानी
बुड़बक छै उ लोग जे सूतै चद्दर तानी
दुहै घरिया मक्खी रोज हकाबै पड़थौंन
कत्तोॅ लोर चुआबोॅ, साथें ...................।

बाप-माय सोची-समझी करने छौं शादी
फैंसन में जों रहभें ते होथौं बर्बादी
पाँच साल के बाद माय के पोती देबै
हमरा जे बहकैतै ओकरा धोपी देबै
भागभे जों छोड़ी के तेॅ पछताबे पड़थौन
कत्तोॅ लोर चुआबोॅ, साथें ...................।