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इज़्ज़तपुरम्-55 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
नई है
खड़ी मूँछ देखकर
डर जाये
औकात क्या
मुट्ठी भर
पचास केजी
लोड में
निकल आयें पसीने
सूअरों के
मोटे भद्दे
थूथनों की रगड़
छील दे चमड़ी
नखों में बल नहीं
कि पंजों से छूट सके
विषैले दन्त
तोड़ने की
टेक्नीक न आये
नीली हो
काँप उठे
राड न कटे
और आरी
रोज मुड़ी रहे
अभी उसे
बारीकी और स्टाइल का
ज्ञान और तजुर्बा भी नहीं
जिसकी पकड़ में
तेज से तेज
तलवार
निराधार हो
सिकुड़ जाये
मुरचाई म्यान में