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फुटकर शेर / बशीर बद्र
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:08, 23 जनवरी 2018 का अवतरण
1.अगर तलाश करूँ कोई मिल ही जायेगा,
मगर तुम्हारी तरह कौन मुझको चाहेगा।
2.अहबाब भी ग़ैरों की अदा सीख गए हैं,
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते।
3.अजीब बात थी कल तुम भी आ के लौट गये,
जब आ गये थे तो पल भर ठहर गये होते।
4.अजीब चराग़ हूं दिन रात जलता रहता हूं,
मैं थक गया हूं हवा से कहो बुझाए मुझे।
5.इसीलिए तो यहां अब भी अजनबी हूं मैं,
तमाम लोग फ़रिश्ते हैं आदमी हूं मैं।