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अरी पवन !/ज्योत्स्ना शर्मा

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33
झीनी चादर
सिहरा सा सूरज
ढूँढे अलाव।
क्यों हुआ हाल ऐसा
बड़ा खाता था ताव !
34
ठिठुरी धूप
ढूँढे है ,कहाँ गया ?
सूरज भूप ।
भोर ले के आ गई
क्यों ये ठंडा-सा सूप ?
35
तुहिन पुष्प
अम्बर बरसाए
धरा लजाए ।
नवोढ़ा , सिमटी -सी,
ज्यों छुपी -छुपी जाए ।
36
रिश्ते प्यार के
चाहा था फूलें- फलें
सँवरें रहें
क्या जानूँ कैसे हुए
अमर बेल बनें
37
चुनती रही
काँटे सदा राह से
और वे रहे
इतने बेफिकर
मेरी आहों से कैसे !
38
अरी पवन !
ली खुशबू उधार
कली -फूल से
ज़रा कर तो प्यार
न कर ऐसे वार !
39
मंज़ूर मुझे
मेरे काँधे बनते
तेरी सीढ़ियाँ
तूने दुनियाँ रची
मिटा मेरा आशियाँ
40
सजे चमन
विविध रंग पुष्प
खिलखिलाएँ
आशा हो नयन में
सदा सन्मार्ग पाएँ ।