पूछिए, सब कुछ हवा से पूछिए|
खेरियत, लेकिन खुदा से पूछिए|
रेल कितना कुछ हमारा ले गई,
लक्ष्मण की उर्मिला से पूछिए|
वायदों के रंग से कितने मधुर,
ये किसी बुढे पिता से पूछिए|
वो हरे सिग्नल लगे कितने निठुर,
फिक्र में डूबी दुआ से पूछिए|
जानकी कैसे रही उद्यान में,
रामजी की मुद्रिका से पूछिए|