भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांद-तारे / कुमार मुकुल
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
काँसे के हँसिए सा
पहली का चांद जब
पश्चिमी फलक पर
भागता दिखता है
तब आकाश का जलता तारा
चलता है राह दिखलाता
दूज को दोनों में पटती है और भी
भाई-बहन से वे साथ चहकते हैं
पर तीज-चौठ को बढ़ती जाती है
चांद की उधार की रौशनी
और तारा
तेज़ी से दूर भागता
सिमटता जाता है ख़ुद में
आकाश में और भी तारे हैं
जो जलते नहीं टिमटिमाते हैं
पर वे चांद को ज़रा नहीं लगाते हैं
निर्लज्ज चांद
जब दिन में
सूरज को दिया दिखलाता है
तारों को यह सब ज़रा नहीं भाता है।