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कहाँ से / प्रेमशंकर शुक्ल
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कहाँ से चुराते हैं फूल--
ताज़गी और गंध
लड़कियाँ-- यौवन, लजारुण हँसी
और इन्तज़ार का इतना धीरज
शब्दो, कहाँ से ढूंढ लेते हो तुम
अपने लिए इतने सुंदर युग्म
हम भटकते हैं दिन-रात
एक पद्य से दूसरे पद्य
एक वाक्य से दूसरे वाक्य
पर कहाँ लिख पाते हैं--
एक सुंदर कविता
जिसमें हमें सुंदर जीवन मिल सके।