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कई किस्म के नाच बताऐ, ना बेरा नाचण आली नै / राजेराम भारद्वाज

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सांग:– चापसिंह– सोमवती (अनुक्रमांक– 28)

वार्ता:- सज्जनो! सोमवती की बात सुनके वे नटनीया उसको मना कर देती है क्यूकि वे कहती है कि तुम तो रंगमहलो मे रहने वाली हो तुम कैसे नाच गाना कर सकती हो और फिर वे नटणीयो का मैंन कलाकार उस सोमवती को क्या कहता है।

जवाब:- मैन नट्कलाकार का।

कई किस्म के नाच बताएं, ना बेरा नाचण आली नै,
गावण के घर दूर बावली, देख अवस्था बाली नै ।। टेक ।।

नटबाजी नटकला बांस पै, तनै डोलणा आवै ना,
दोघड़ धरकै नाचैगी के, गात झोलणा आवै ना,
संगीत कला गन्र्धफ नीति का, भेद खोलणा आवै ना,
साज मै गाणा दंगल के म्हा, तनै बोलणा आवै ना,
के जाणै सुरताल दादरा, ठुमरी गजल क्वाली नै।।

एक सुंदर महल,-बगीचा धोरै, ना कोऐ गाम दिखाई दे,
नो दरवाजे दस ढयोडी, एक रास्ता आम दिखाई दे,
पांच पच्चीस का कुटम्ब, हूर नाचै सुबह-शाम दिखाई दे,
मैन गेट मै दो झांकी, दुनियां तमाम दिखाई दे,
भीतर-बाहर खबर देणी, एक पहरेदार रूखाली नै।।

एक बाग मै पेड़ समी का, तोता-मैना बैठे बात करै,
सत्रहा दुश्मन बारहा साथी, जिंदगी भर का साथ करै,
आठ पहर के 24 घंटे, 64 घड़ी विख्यात करै,
गुलशन बाग छुट्या बुलबुल का, कित डेरा दिनरात करै,
सकल जमाना दुश्मन दिखै, बाग खोस लिया माली नै।।

बारहा राशि बारहा महीने, छह ऋतु भी कहलाती है,
बारहा सूर्य तप्या करै, उडै हवा तेज ताती है,
लख चैरासी जियाजून, उडै रोज खबर जाती है,
छः राग और तीस रागणी, वेद दूनी सब गाती है,
राजेराम रटै जगदम्बे, देबी शेरावाली नै।।