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पूर्णमल बेईमान तनै, भक्ति कै ला दिया दाग / हरीकेश पटवारी

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{{KKRachna |रचनाकार=हरिकेश पटवारी |अनुवादक= |संग्रह=संदीप कौशिक

पूर्णमल बेईमान तनै, भक्ति कै ला दिया दाग,
क्यूं राज घर जन्म लिया था, ओ पापी निर्भाग || टेक ||

हाथ बीच म्ह दिखै, तेरै झुठ सुमरणी सै,
मीठी तेरी जुबान, पेट म्ह लगी कतरणी सै,
माता उत्तम धाम देख, वेदा नै बरणी सै,
इसे पापां नै देख रात नै, कापै धरणी सै,
ब्रह्मचारी कै किस तरैया, यू इश्क गया था जाग ||

पढ़-लिखकै नै बेईमान, तनै ल्हाज शर्म खोई,
चढ़या पिता की सेज पै, रै पूर्णमल धौही,
करग्या घायल रात नै, वा नूणादे रोई,
नीच मलंग भी नही करै, जो कार तनै टोही,
बुरी करणीया जगत बीच म्ह, बणै हंस तै काग ||

सलेभान की दुनिया म्ह थी, सबतै ऊंची लाज,
बुरी बात नै सुणकै, दुख मानैगा सकल समाज,
जाम्या पूत-कपूत कोख तै, तार लिया सै ताज,
तेरी करणी की सुणकै, के थुकैगा महाराज,
ईश्वर के करणे होज्या, तेरै लड़ियो काला नाग ||

आग्या बख्त आखरी पूर्णमल, करणी का फल पा ले,
तारदे पोशाक वस्त्र, पहर लिये तू काले,
जिस माणस तै मिलणा चाहवै, दरबारा म्ह बुलवाले,
फेर नही थ्यावैगा पूर्ण, खाणा हो सो खा ले,
हरिकेश तेरी बदनामी का, खूब बणावै राग ||