भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चन्दन वन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 21 अगस्त 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चन्दन वन
अपनों ने जलाया
बचे थे ठूँठ
थोड़ी- सी थी खुशबू
किसी कोने में
आखिरी साँस लेती,
कोई आ गया
धूप में छाया बन
प्राणपण से
मन व प्राणों पर
खुशबू बन
प्यार बन ,छा गया
जो कुछ बचा
वह उसी का रचा
उसी का रूप
सर्दी की वह धूप
और न कोई
केवल तुम्हीं तो हो
मेरी जीवन - आशा।
-0-