गीतकार : मजरुह सुल्तानपुरी
मिला दिल मिल के टूटा जा रहा है
नसीबा बन के फूटा जा रहा है..
नसीबा बन के फूटा जा रहा है
दवा-ए-दर्द-ए-दिल मिलनी थी जिससे
वही अब हम से रूठा जा रहा है
अंधेरा हर तरफ़, तूफ़ान भारी
और उनका हाथ छूटा जा रहा है
दुहाई अहल-ए-मंज़िल की, दुहाई
मुसाफ़िर कोई लुटा जा रहा है