भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

धरा पर बसंत / रश्मि शर्मा

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:55, 7 अक्टूबर 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।


मुरझाई सी अमराई में
है गुनगुन
भौरों की आहट
खि‍ले बौर अमि‍या में
मंजरी की सुगंध छाई

धूप ने पकड़ा
प्रकृति‍ का धानी आंचल
देख सुहानी रूत
फूली सरसों, पीली सरसों
इतराती है जौ की बालि‍यां

गया शिशि‍र
धूप खि‍ली,झूमीं वल्‍लरि‍यां
फुनगी पर सेमल की
नि‍खरी हर कलि‍यां

महुआ की डाल पर
अकुलाया है मन
चि‍रैया की पांख पर
उतर आया
स्‍मृति का मदमाता
केसरि‍या बसंत

ठूंठ से फूटती
नवपल्‍ल्‍व
टेसू से टहक नारंगी लौ
नव कोंपल ने आवाज लगाई
छोड़ मन की पीड़ा
देख ले तू मुड़कर एक बार
राही
धरा पर बसंत ऋतु आई