भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसकी थकान / मनमोहन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:00, 5 अक्टूबर 2018 का अवतरण
यह उस स्त्री की थकान थी
कि वह हँस कर रह जाती थी
जबकि
वे समझते थे
कि अन्ततः उसने उन्हें
क्षमा कर दिया !