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वीरानी / यानिस रित्सोस / अनिल जनविजय

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हवा में लटकी हुई है उदासी
खिड़की की सलाखों के बाहर
हिल रही हैं पेड़ की नंगी टहनियां
तुम उस खिड़की से सटी खड़ी हो
 
घर के सामने से रात गुज़र रही है
उस प्रिय स्त्री की तरह
जिसे किसी ने अपनी बाँहों में बाँध रखा है

और चाँद धुन्धला है, शान्त है उस बुझे हुए बल्ब की तरह
सड़क के मोड़ पर स्थित दूकान के ऊपर लगा हुआ है जो

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय