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ब्राह्मणवाद हँसा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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सुनकर मज़्लूमों की आहें
ब्राह्मणवाद हँसा
धर्म, वेद के गार्ड बिठाकर
जाति, गोत्र की जेल बनाई
चंद बुद्धिमानों से मिलकर
मज़्लूमों की रेल बनाई
गणित, योग, विज्ञान सभी में
जाकर धर्म घुसा
स्वर्ग-नर्क गढ़ दिये शून्य में
अतल, वितल, पाताल रच दिया
भाँति भाँति के तंत्र-मंत्र से
भरतखण्ड का भाल रच दिया
कवियों के कल्पित जालों में
मानव-मात्र फँसा
सत्ता का गुरु बनकर बैठा
पूँजी को निज दास बनाया
शक्ति जहाँ देखी
चरणों में गिरकर अपने साथ मिलाया
मानवता की साँसें फूलीं
फंदा और कसा