भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया आ जइहा / उमेश बहादुरपुरी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ४ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:50, 14 मार्च 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया आ जइहा रात के अँधरिया में
हमरा लाज लागे वाली उमरिया में
नुक छिप के प्यार करबइ करबइ ठिठोली
जान जइतो दुनियाँ त मार देतो गोली
सइयाँ लग जइतो भीड़ कचहरिया में
हमरा ....
इहाँ प्यार के हे सँइया दुश्मन जमाना
ई दिल तो हे सइयाँ तोहरे दिवाना
कभी भूल के न अइहा इंजोरिया में
हमरा ....
झूलबइ हम रोज तोर बहियाँ में झूला
अइहा तूँ लेके सइयाँ उड़नखटोला
तूँ बसा के रखिहा अप्पन नजरिया में
हमारा ....
देबो मोबाइल पर जब तोरा मैसेज
तब अइहा लेके तूँ प्यार के पैकेज
हम मिल जइबो बरबिघा बजरिया में
हमरा .....