आसिफ़ा के नाम / असद ज़ैदी
सलाम, अरे आसिफ़ा !
तुमको मेरा और तुम्हारी ख़ाला का सलाम पहुँचे !
चुन्नो और नवाब भी सलाम कहते हैं…
तुम इनको नहीं जानती मैं भी नहीं जानता… पर हैं बड़े ना-अहल ।
तमाम नालायक़ बच्चों का सलाम पहुँचे तुम्हें और तुम्हारे घोड़ों को
वे जलन से मरे जाते हैं घोड़ों को हरी चरागाह को
तुम्हारी आज़ादी को देख कर ।
अगर ये पहुँच गए तुम्हारे पास तो ख़ूब कोहराम मचाएँगे
चरागाह मैं दौड़ लगाएँगे घास को रौंदेंगे तुम मुस्कुराओगी
तुम्हें मालूम है घास कितनी कड़ियल और समझदार होती है ।
अगले वक़्तों के बुज़ुर्गों का तुमको प्यार — मीर-ओ-सौदा का
नज़ीर-ओ-अनीस और मिर्ज़ा नौशा का, अन्तोन और अल्ताफ़ का
और बीसवीं सदी के तुम्हारे पुरखों — नाज़िम-ओ-पाब्लो, फ़ेदेरीको, बर्तोल्त-ओ-रवि, फ़ैज़-ओ-गजानन का
मक़बूल-ओ-अमीर, महमूद, थियो यूनानी-ओ-अब्बास-ए-ईरानी का
उदास और मनहूस फ़रिश्तों — सेसर, फ़्रांत्स-ओ-पाउल का
शक्की पर रहमदिल—सआदत-ओ-रघुवीर-ओ-तदेऊश का
और हर क़िस्म की पुरानी ख़वातीन का — अन्ना, रोज़ा, अनीस, मरीना, ज़ोहरा, विस्वावा,
अख़्तरी, बाला, कमला, मीना, गीता, नरगिस, स्मिता… ये फ़ेहरिस्त ख़त्म होने को नहीं आती ।
तुमने इनमें किसी का नाम नहीं सुना, ये भी तुम्हें कहाँ जानते थे !
तो मामला बराबर हुआ । न इन्हें कोई शिकवा न तुम्हें कोई शिकायत !
सुकून, और बस यह उल्फ़त —
चंचल, शोख़, संजीदा, ख़ामोश
और मुर्दा । प्यार तो प्यार है… खोया प्यार भी हमेशा प्यार ही रहेगा ।
बहुत बदनसीबी देखी है इन बुज़ुर्गों ने, पर तुम्हें देखकर सब ख़ुश होंगे
सआदत ताया कहेंगे लो यह आई हमारी नन्ही शहीद !
ख़ुशनसीब लोगों का क़िस्सा कुछ और है — जो विजयी हैं वही ना-ख़ुश हैं ।
साल उन्नीस सौ सैंतालीस… अक्तूबर और नवम्बर के वो दो महीने ।
एक दिन शुमार मे जो इकसठ थे, दो हफ़्तों में चालीस से नीचे आ गए —
ऐसा था डोगरा राज का जनसंख्या प्रबन्धन ।
मरने वालों की तादाद — दो लाख सैंतीस हज़ार, उजड़े और लापता — छह लाख ।
तुम्हें मालूम है कौन था हरि सिंह
और वो मेहर चन्द, प्रेम नाथ, यादविन्दर सिंह…?
कोई बात नहीं — वे सब जा चुके हैं अब, सारे क़ातिल, और उनके गुर्गे ।
उनकी औलाद अब ख़ुद को मज़लूमों में गिनती है ।
ये लोग कहते हैं हम दुखी हैं, हम वंचित हैं । दरअस्ल वो सच कहते हैं ।
कैसी तकलीफ़ों में गुज़री है कर्णसिंह की ज़िन्दगी ! यह कहो तो सब करते हैं हा हा हा !
अब मनहूस महबूबा को ही देखो — वह नहीं समझ पाती कि हर बला
हर जुर्म उसी के माथे पर क्यों मढ़ दिया जाता है
क्यों हर शै और हर शख़्स उसे ना-ख़ुश कर देने को आमादा है !
और हाँ आसिफ़ा, उस अजीबो-ग़रीब अलबेले अरिजीत सेन कलाकार को अपना समझना
वह तुम्हें चरागाह में मटरगरगश्ती करता दिखाई देगा
अपने किसी घोड़े को बता देना उसके पास जाकर शराफ़त से हिनहिनाए
और अगर वह तुम्हारे घर के पास से गुज़रता हो
तो उसे रोककर कहना सिगरेट बुझा दे और
उसके हाथ में थमा देना साफ़ पानी का एक गिलास ।