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अपनी राह गए(मुक्तक) / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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1
जिनके लिए मैं मिटा उम्रभर, उन सबने दुत्कार दिया
जिनकी खातिर प्राण लुटाए, सदा पीठ पर वार किया।
‘हम तेरे हैं’ जो कहते थे, वे सब अपनी राह गए
एक तुम्हीं थे दर्द पिया पर, फिर भी जीभर प्यार किया।
2
जो भी अन्तिम गीत हो मेरा, सारे उजियारे नाम लिखूँ
जो भी मिले इन उजियारों से, उसे तुम्हारे नाम लिखूँ।
पाप-पुण्य सभी होता मन का, मन को किसने देखा है
सभी लहरें खुद झेलूँ, तुझको सिर्फ़ किनारे नाम लिखूँ।