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28325674549 / पाब्लो नेरूदा / मंगलेश डबराल

एक हाथ ने एक सँख्या बनाई,
एक छोटे पत्थर को जोड़ा
दूसरे से, बिजली की एक कड़क को
दूसरी से,
एक गिरी हुई चील को दूसरी चील से,
तीर की एक नोक को
दूसरी नोक से,
आर फिर ग्रेनाइट सरीखे धैर्य के साथ
एक हाथ ने दो चीरे लगाए,
दो घाव और दो खाँचे : एक संख्या ने जन्म लिया ।

फिर आई संख्या दो
और फिर चार;
एक हाथ
उन सबको बनाता गया —
पाँच, छह, सात,
आठ, नौ, लगातार,
पक्षी के अण्डों जैसे शून्य ।
पत्थर की तरह
अटूट, ठोस,
हाथ सँख्याएँ दर्ज करता रहा,
अनथक, और एक सँख्या के भीतर
दूसरी सँख्या,
दूसरी के भीतर तीसरी,
भरपूर, विद्वेषपूर्ण,
उर्वर, कड़वी,
द्विगुणित होती, उठती
पहाड़ों में, आँतों में,
बाग़ीचों में, तहख़ानों में,
किताबों से गिरती हुईं
कंसास, मोरेलिया* पर उड़तीं
हमें अन्धा बनातीं, मारती हुईं सब कुछ ढाँपती हुईं
थैलों से, मेज़ों से गिरती हुईं
सँख्याएँ, सँख्याएँ,
सँख्याएँ ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल