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दर्द बसाया मैंने / राहुल शिवाय

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निठुर प्रिया से प्रीत लगाकर
निज हृद दर्द बसाया मैंने।

एकाकी संगीत हो गया
गीतों में आँसू को बोकर,
बनी पीर की एक शृंृंखला
शब्द-शब्द में घाव पिरोकर।

जिसे सदा अपना कहता था
पाया उसे पराया मैंने।

मन को है सुधियों ने घेरा
खिलीं नहीं चाहत की कलियाँ,
गिरीं टूटकर, बिखरी भू पर
आशाओं की कच्ची फलियाँ।

विरहानल का आतप पाया,
निज मन है झुलसाया मैंने।

कल था जिन सपनों को सींचा
उन सपनों ने मुझको लूटा,
छूट गये सारे ही बंधन
पर बंधन से मोह न छूटा।

है वसंत का उत्सव जग में
पतझड़ को अपनाया मैंने।