भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सृजन बिकने नहीं देंगे / उर्मिलेश

Kavita Kosh से
Arti Singh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:30, 6 जुलाई 2023 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भले ही तुम प्रलोभन दो हमें अपनी कृपाओं के,
मगर हम लेखनी का बांकपन बिकने नहीं देंगे।
भले बाग़ी बताओ या हमें फाँसी चढ़ाओ तुम,
मगर हम मौत के डर से सृजन बिकने नहीं देंगे।

वही हमने लिखा है आज तक जो कुछ सहा हमने
भला डर कर किसी भी रात को कब दिन कहा हमने
इसी से हम उपेक्षित रह गए उनकी सभाओं में
न उनके साथ महफ़िल में लगाया कहकहा हमने ।

निमंत्रण मिल रहे हैं आज भी सुविधा भरे हमको
मगर तन के लिए खुद्दार मन बिकने नहीं देंगे।