भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

व्याकुलता / अजित कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:57, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

व्याकुलता अब भी वैसी ही है ।

अन्तर बस इतना है—
पहले वह होती थी रोज़-रोज़,
तब हर अन्यायी को खोज-खोज
लड़ने को मुट्ठी तन जाती थी ।
और आज—
सुख-सुविधा की चिन्ता, कामकाज
में फँसकर
चार-छै महीनों में एक बार
होती है ।
किन्तु आज भी है वह दुर्निवार ।
अब भी मेरी आत्मा वैसे ही रोती है ।