भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमेशा के लिए / नोमान शौक़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:48, 13 सितम्बर 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

निकल जाते हैं सपने
किसी अनन्त यात्रा पर
बार-बार की यातना से तंग आकर

गीली आँखें
बार-बार पोंछी जाएँ
सख्त हथेलियों से
तो चेहरे पर ख़राशें पड़ जाती हैं
हमेशा के लिए !