भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इन सर्दियोँ में / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:59, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं
उन्हें याद करने पर मैं सिहरता हूँ इन सर्दियों में भी
हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं

पिछली सर्दियों में चली गई थी मेरी माँ
खो गया था मुझसे एक प्रेमपत्र छूट गई थी एक नौकरी
रातों को पता नहीं कहाँ भटकता रहा
कहाँ कहाँ करता रहा टेलीफ़ोन
पिछली सर्दियों में
मेरी ही चीज़ें गिरती रही थीं मुझ पर

इन सर्दियों में
निकालता हूँ पिछली सर्दियों के कपड़े
कंबल टोपी मोज़े मफ़लर
देखता हूँ उन्हें गौर से
सोचता हुआ बीत गया है पिछला समय
ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए
             Mangalesh Dabral
               THIS WINTER

Last winter was difficult
Remembering it I shiver this winter
Though the days are not so severe

Last winter mother departed
A love letter went missing a job was lost
I don’t know where I wandered in the nights
The many telephone calls I made
My own things kept falling
All over me

This season I unpack the clothes worn last year
—Blankets cap socks a muffler—
I gaze at them intently
Sure that those days are past
This winter can’t really be as hard.

(Translated from Hindi by Asad Zaidi)